"नालंदा महाविहार: प्राचीन भारत का ऑक्सफोर्ड और उसकी पुस्तकालय"
नालन्दा विश्वविद्यालय — प्राचीन महिमा: स्थापना से विनाश तक
परिचय — एक पीढ़ी की कहानी जो कई युगों को जोड़ती है
नालन्दा सिर्फ ईंट-पत्थरों का समूह नहीं; यह उस संग्रह का नाम है जहाँ विचार, पुस्तकों, यात्रियों और बहसों ने पीढ़ियों तक ज्ञान का संचार किया।
नालन्दा (Nālandā) का ऐतिहासिक विस्तार लगभग 3-रे शताब्दी ई.पू. से 13वीं शताब्दी ईस्वी तक पाया जाता है — परन्तु उसका वास्तविक 'विश्वविद्यालय' स्वरूप 5वीं शताब्दी के आसपास स्थापित हुआ। प्राचीन पाठ्य-पुस्तकें, चीनी यात्रियों के वृत्तांत और खुद पुरातात्विक खुदाई इस बात का संकेत देते हैं कि नालन्दा एक आवासीय, बहुविषयी शैक्षणिक केंद्र था जहां छात्र और आचार्य वर्षों तक रहते और पढ़ाते थे। 1
स्थापना — कब और किसने?
परंपरा और ऐतिहासिक संकेत मिलाते हैं कि नालन्दा का समकालीन उत्कर्ष गुप्त वंश और तत्पश्चात पाल राजाओं के संरक्षण से हुआ। अक्सर इसे सम्राट कुमारगुप्त प्रथम से जोड़ा जाता है — परंतु यह एक दीर्घकालिक विकास था: स्थानीय ठिकानों पर विहार और अध्यापन धीरे-धीरे बड़े आवासीय महाविहार में परिवर्तित हुए। कुछ स्रोत कहते हैं कि 5वीं शताब्दी के बाद से नालन्दा ने वैश्विक छात्र-आकर्षण पा लिया। 2
आवासीय विश्वविद्यालय का स्वरूप — लोग कैसे रहते और पढ़ते थे
नालन्दा में छात्र और शिक्षक लंबी अवधि तक रहते थे — कभी-कभी वर्षों तक। यह 'गुरुकुल' जैसी पद्धति थी परन्तु शहरी स्तर पर — छात्रावास, भोजन-प्रबंध, व्याख्यान-शाला और पुस्तकालय का जटिल संयोजन।
प्रवेश कठोर था: केवल वे छात्र जिन्हें तर्क-वितर्क और मौलिक ज्ञान में दक्ष माना जाता था, उन्हें ही प्रवेश मिलता था। अध्यापन पद्धति में व्याख्यान, संवाद, प्रतिवाद और ग्रंथ-समेकन शामिल थे।
पाठ्यक्रम — क्या पढ़ाया जाता था?
नालन्दा बहु-विषयी केंद्र था। यहाँ कुछ प्रमुख विषय रहे:
- बौद्ध दर्शन (महायान और मठ-परंपराएं)
- तर्कशास्त्र और न्यायशास्त्र
- व्याकरण, भाषा-विज्ञान (संस्कृत, पाली)
- गणित, ज्योतिष और खगोलशास्त्र
- आयुर्वेद और चिकित्सा विज्ञान
- कला, वास्तुकला, और साहित्य
यह विविधता बताती है कि नालन्दा केवल धार्मिक शिक्षा का केन्द्र नहीं था; यह प्राचीन 'समग्र शिक्षा' का आदर्श था, जहाँ जीवन के व्यावहारिक तथा दार्शनिक दोनों पक्षों पर ध्यान दिया जाता था।
धर्मगंज — पुस्तकालय का विस्तार और संरचना
नालन्दा का पुस्तकालय, जिसे साधारणतः 'धर्मगंज' कहा गया है, तीन-मुख्य इमारतों में विभक्त था — रत्नसागर, रत्नरंजक और रत्नोदधि — और कहा जाता है कि इनमें लाखों ग्रंथ (पांडुलिपियाँ) संचित थीं। यह ज्ञान का ऐसा भंडार था जिसका आकार और बड़े स्तर का भयावहता दोनों ही विदेशों के यात्रियों ने वर्णित किया।
ग्रंथ ताड़पत्र, भोजपत्र और अन्य सामग्रियों पर लिखे जाते थे; उनकी बहुसंख्यकता ने नालन्दा को 'लाइब्रेरी-सिटी' का दर्जा दिलाया। पुरातात्विक खुदाइयों में भी कई लेखन-साहित्यिक अवशेष मिले हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं। 3
“कुछ यात्रियों ने यहाँ के पुस्तक-महल का वर्णन करते हुए कहा कि ऐसी पुस्तकें थीं जिनके पन्ने इतने ख़ास और गहन थे कि वे एक विधिवत संग्रह को जन्म देते थे।” — (विद्वानों के पारंपरिक वर्णन का सार)
ह्यूएन-ट्सांग और इत्सिंग — विदेशियों की आख्यायिका
चीन के यात्रियों ने नालन्दा के बारे में पत्रिकाओं और वृत्तांतों में विस्तृत जानकारी दी। सबसे प्रसिद्ध है ह्यूएन-ट्सांग (Xuanzang), जिसने 7वीं शताब्दी में नालन्दा में पढ़ाई की और अपने विस्तृत यात्रा वृत्तांत में नालन्दा के अनुशासन, शिक्षक-छात्र परंपरा और ग्रंथ संग्रह का जिक्र किया। 4
इत्सिंग (Yijing) ने भी नालन्दा का वर्णन किया और बताया कि कैसे यहां के विद्यार्थी 'आश्रम-जीवन' में रहते हुए गहन अध्ययन करते थे। विदेशी वर्णनों से यह स्पष्ट होता है कि नालन्दा का प्रभाव समूचे एशिया पर पड़ा — न केवल धार्मिक चिंतन पर, बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर भी।
विनाश — कब और कैसे?
प्रचलित परंपरा और कई ऐतिहासिक लेखों के अनुसार, 12वीं–13वीं शताब्दी में तुर्की-आधिकारिक आक्रमणों के दौरान नालन्दा पर आक्रमण हुआ। कई इतिहासकार बख्तियार खिलजी के आक्रमण (लगभग 1193 ई.) को नालन्दा के विनाश से जोड़ते हैं। खुदाइयों में प्राप्त राख-परत और साक्ष्य यह संकेत देते हैं कि परिसर को किसी बड़े आग-जले से क्षति पहुँची थी। किंतु विद्वानों के बीच इसके विस्तृत कारणों, तिथियों और जिम्मेदारों को लेकर कुछ बहस भी मौजूद है — उदाहरण के लिए कुछ अनुसंधान यह भी सुझाते हैं कि विनाश कई चरणों में हुआ और कई संस्थानों पर अलग-अलग समय पर आक्रमण हुए। 5
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि नालन्दा का विनाश केवल भौतिक संरचना का विनाश नहीं था; यह ज्ञान के हस्तांतरण, पुस्तकालयों के क्षय और विद्वानों के पलायन का कारण बना — जिससे भारतीय उपमहाद्वीप की बौद्धिक परंपरा पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा।
विनाश के बाद क्या हुआ — ज्ञान की धारा का परिवर्तन
नालन्दा के विनाश के बाद कई विद्वान और ग्रंथ बाहर निकले; कुछ ग्रंथ तिब्बत और चीन पहुँचे और वहाँ बौद्ध अध्ययन को प्रभावित किया। इस तरह, भारतीय ज्ञान का एक बड़ा हिस्सा दक्षिण और पूर्व एशिया की ओर प्रवाहित हुआ — पर नालन्दा की आत्मा स्थानीय रूप से क्षीण हो गई।
प्राचीन नालन्दा का वैश्विक महत्व (सारांश)
- यह दुनिया के सबसे पुराने आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक था।
- यहां अंतरराष्ट्रीय छात्र आते थे — एक वैश्विक शिक्षा हब।
- पुस्तकालय और ग्रंथ संग्रह के कारण इसे ज्ञान-केन्द्र का सर्वोच्च स्थान मिला।
समाप्ति (भाग 1)
भाग 1 में हमने नालन्दा के प्राचीन जीवन का बारीकी से जायज़ा लिया — इसकी स्थापना, पाठ्यक्रम, विशाल पुस्तकालय और विनाश तक की कहानी। भाग 2 में हम 21वीं सदी के नालन्दा पुनर्जन्म, आधुनिक विश्वविद्यालय का ढाँचा, कोर्सेस, आंकड़े, इंटरनेशनल पार्टनरशिप, पर्यटन-गाइड, और निष्कर्ष सहित पूरा संदर्भ (sources) देंगे — आप नीचे दिए गए बटन से भाग 2 के लिए आगे बढ़ें।
नवीन नालंदा विश्वविद्यालय: प्राचीन गौरव का आधुनिक रूपांतरण
लेखक: योगी · प्रकाशित: 9 अगस्त 2025 · शीर्षक शब्द संख्या: ~4100 शब्द
1. प्रस्तावना – सभ्यता का पुनर्जागरण
आपने "नालंदा" नाम कई बार सुना होगा — एक ऐसा शिक्षा केंद्र जिसे इतिहास "ज्ञान का सागर" मानता था। अब यह सपना आधुनिक यथार्थ में बदल गया है, जहाँ राजगीर में स्थापित नवीन नालंदा विश्वविद्यालय अपने प्राचीन पूर्ववर्ती की आत्मा को पलट कर जीवन दे रहा है, आधुनिक वैश्विक चुनौतियों को ध्यान में रखकर।
2. स्थापना की यात्रा
**नवीन नालंदा विश्वविद्यालय** की स्थापना 2010 में एक ऐतिहासिक विधान (Act of Parliament) द्वारा हुई। इसे विदेश मंत्रालय के तहत स्थापित सबसे पहले केंद्रीय अनुसन्धान विश्वविद्यालय (Central Research University) के रूप में रखा गया, और बाद में इसे “Institute of National Importance” का दर्जा मिला। ([turn0search22])
3. आधुनिक परिसर और पर्यावरणीय पहल
जून 2024 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्वविद्यालय के "नेट-जीरो ग्रीन कैंपस" का विधिवत उद्घाटन किया। यह न केवल एक विशाल शैक्षणिक परिसर है, बल्कि पर्यावरणीय सस्टेनेबिलिटी का एक मॉडल भी है। CM नीतीश कुमार ने इसे बिहार और भारत में एक पर्यावरण-प्रधान बुनियादी ढांचे के रूप में सराहा। ([turn0news16])
4. प्रशासन में बदलाव
मई 2025 में अर्थशास्त्री **सचिन चतुर्वेदी** ने विश्वविद्यालय के उपकुलपति (Vice Chancellor) का पद संभाला, और उन्होंने कहा कि उस प्रसिद्ध पंक्ति "आ नो भद्राः... " का मतलब ही ज्ञान का वैश्विक आदान-प्रदान है — और नालंदा इसी का प्रतीक है। ([turn0news19])
5. शैक्षिक विस्तार और पाठ्यक्रम विस्तार
जून 2025 तक, विश्वविद्यालय ने पिछले वर्ष छह नए मास्टर प्रोग्राम शुरू किए थे — और आने वाले 2025-26 से चार और प्रोग्राम (अर्थशास्त्र, गणित, दर्शन, हिंदी) जोड़ने की घोषणा की है। कुल मास्टर्स प्रोग्राम संख्या अब बढ़कर 12 हो रही है। ([turn0search0], [turn0search1])
6. छात्र संख्या और अंतरराष्ट्रीय समुदाय
वर्तमान में विश्वविद्यालय में लगभग 1,200 छात्र पढ़ रहे हैं, जिसमें 400+ नियमित (Masters/PhD) और 800+ शॉर्ट-टर्म कोर्सज शामिल हैं। इनके साथ 21 देशों से विद्यार्थी शामिल हैं, जो इसे एक अंतरराष्ट्रीय शिक्षा केंद्र बनाता है। ([turn0search0], [turn0search3])
7. शिक्षण दृष्टि और इंटरनेशनल साझेदारी
नालंदा विश्वविद्यालय ने 20+ अंतरराष्ट्रीय MoUs साइन किए हैं। इनमें Research & Information System (RIS), ASEAN नेटवर्क, विभिन्न यूनिवर्सिटीज जैसे Salamanca, IIT कानपुर, IIT रुड़की शामिल हैं। यह आधुनिक-प्राचीन संवाद को आगे बढ़ाता है। ([turn0search1])
8. विशिष्ट पाठ्यक्रम और UGC मान्यता
विश्वविद्यालय में पारंपरिक विषयों के अलावा पर्यावरण अध्ययन, बुद्ध अध्ययन, दर्शन और मानविकी जैसे विषय शामिल हैं। यह फिलहाल PG और PhD स्तर पर उपलब्ध हैं और UGC, NAAC से संबद्ध हैं। ([turn0search22])
9. NOU का समसामयिक सुधार
साथ ही, बिहार का खुला विश्वविद्यालय — **नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी (NOU)** — अपने अध्ययन सामग्री को UGC की डीईबी मानकों और CBCS सिस्टम के अनुसार सुधार रहा है। इसे पहले से बेहतर अखिल भारतीय पहुंच और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया कदम माना जा रहा है। ([turn0news20])
*नोट: NOU, आधुनिक नालंदा यूनिवर्सिटी से अलग रोजगार या खुले शिक्षा केंद्र का हिस्सा है।*
10. बुनियादी ढांचे सुधार
अगस्त 2025 में CM नीतीश कुमार ने सलेपुर-राजगीर चार लेन हाईवे और एक रेल ओवरब्रिज का शिलान्यास किया। इससे पटना और राजगीर के बीच दूरी लगभग 20 कि.मी. कम होगी और विश्वविद्यालय की पहुंच आसान होगी। ([turn0news15])
11. मीडिया और सरकारी रिपोर्टों में उपस्थिति
सरकार और मीडिया ने विश्वविद्यालय की ग्रीन मॉडल, अंतरराष्ट्रीय संपर्क, और आधुनिक आंकड़ों पर लगातार रिपोर्टिंग की है। इसका G20 संगोष्ठी में स्थान नियंत्रण, उच्च स्तरीय छात्र अनुभव, और उद्घाटन समारोहों में PM की भागीदारी इसे राष्ट्रीय गौरव बनाती है। ([turn0search7], [turn0search26], [turn0search5])
12. मानवीय और प्रेरणादायक दृष्टिकोण
आधुनिक नालंदा सिर्फ एक शैक्षणिक संस्थान नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है — जो अतीत के ज्ञान को वर्तमान की चुनौतियों से जोड़ता है। यहाँ बहुसांस्कृतिक संवाद, आत्मनिर्भर शोध, और सतत विकास की भावना मिलती है।
13. निष्कर्ष
नवीन नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन गौरव की एक पुनरावृत्ति है, लेकिन साथ ही यह भविष्य की शिक्षा का मॉडल भी स्थापित कर रहा है — इको-फ्रेंडली, ग्लोबल, और विचारशील। यह हमारे लिए याद और प्रेरणा दोनों का संगम है।
14. स्रोत और संदर्भ
• संसद अधिनियम, VCs, मीडिया रिपोर्ट्स: Times of India, Indian Express, NOU समाचार
• राजगीर हाईवे और अधोसंरचना: TOI (Aug 2025)
• छात्र संख्या, MoUs: Times of India, Global Education News (Jun 2025)
• UNESCO & Administrative details: Wikipedia entries ([Nalanda University], [Nalanda Mahavihara])
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