Rajasthan drainage System
राजस्थान की जल निकासी प्रणाली
एक विस्तृत और व्यापक विश्लेषण
राजस्थान, भारत का सबसे बड़ा राज्य, अपनी विविध भौगोलिक संरचना और जलवायु परिस्थितियों के लिए जाना जाता है। इस विशाल क्षेत्र में जल निकासी प्रणाली का अध्ययन एक रोचक और महत्वपूर्ण विषय है। राजस्थान की जल निकासी प्रणाली मुख्य रूप से अरावली पर्वतमाला द्वारा निर्धारित की जाती है, जो राज्य को दो distinct जल निकासी basins में विभाजित करती है। इस लेख में हम राजस्थान की जल निकासी प्रणाली के विभिन्न पहलुओं का गहन अध्ययन करेंगे और यह समझने का प्रयास करेंगे कि कैसे यह प्रणाली राज्य के जल संसाधन प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
राजस्थान की भौगोलिक संरचना और जल निकासी
राजस्थान की भौगोलिक संरचना अत्यंत विविधतापूर्ण है, जिसमें थार मरुस्थल के शुष्क क्षेत्रों से लेकर अरावली पर्वतमाला के हरे-भरे क्षेत्र शामिल हैं। यह विविधता जल निकासी प्रणाली को गहराई से प्रभावित करती है। अरावली पर्वतमाला, जो देश के सबसे पुराने पर्वतों में से एक है, राजस्थान की जल निकासी प्रणाली के लिए एक जल विभाजक (water divide) का कार्य करती है।
अरावली पर्वतमाला का महत्व
अरावली पर्वतमाला राजस्थान को दो मुख्य जल निकासी बेसिनों में विभाजित करती है - पूर्वी राजस्थान और पश्चिमी राजस्थान। पूर्वी राजस्थान की नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं, जबकि पश्चिमी राजस्थान की नदियाँ अरब सागर में या फिर आंतरिक जल निकासी बेसिन का हिस्सा हैं। इस विभाजन का राज्य के जल संसाधनों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
राजस्थान की प्रमुख नदी प्रणालियाँ
राजस्थान की जल निकासी प्रणाली को मुख्य रूप से तीन बेसिनों में विभाजित किया जा सकता है: बंगाल की खाड़ी बेसिन, अरब सागर बेसिन और आंतरिक जल निकासी बेसिन।
बंगाल की खाड़ी बेसिन
राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी भाग की नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। इनमें चंबल, बनास, काली सिंध और पार्वती नदियाँ शामिल हैं। ये नदियाँ यमुना नदी के माध्यम से गंगा नदी तंत्र का हिस्सा हैं। इस बेसिन का कुल क्षेत्रफल लगभग 1,12,490 वर्ग किलोमीटर है, जो राज्य के कुल geographical area का लगभग 33% है।
अरब सागर बेसिन
राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी भाग की नदियाँ अरब सागर में गिरती हैं। इनमें माही, सोम और जाखम नदियाँ शामिल हैं। ये नदियाँ सीधे अरब सागर में गिरती हैं। इस बेसिन का कुल क्षेत्रफल लगभग 20,895 वर्ग किलोमीटर है, जो राज्य के कुल geographical area का लगभग 6% है। माही नदी इस बेसिन की सबसे महत्वपूर्ण नदी है।
आंतरिक जल निकासी बेसिन
राजस्थान के पश्चिमी भाग की नदियाँ समुद्र तक नहीं पहुँच पातीं और रेगिस्तान में लुप्त हो जाती हैं। इनमें लूनी, घग्घर और काकनेय नदियाँ शामिल हैं। इस बेसिन का कुल क्षेत्रफल लगभग 2,08,395 वर्ग किलोमीटर है, जो राज्य के कुल geographical area का लगभग 61% है। यह बेसिन राजस्थान के सबसे शुष्क क्षेत्रों को cover करता है।
प्रमुख नदियाँ और उनका महत्व
राजस्थान की जल निकासी प्रणाली में कई महत्वपूर्ण नदियाँ शामिल हैं, जो राज्य के जल संसाधनों का आधार हैं।
चंबल नदी
चंबल नदी राजस्थान की सबसे महत्वपूर्ण नदी है जो मध्य प्रदेश में जनापाव पहाड़ी से निकलती है। यह नदी राजस्थान के कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर और धौलपुर जिलों से होकर बहती है। चंबल नदी पर बने बाँध - गांधी सागर, राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर और कोटा बैराज - राजस्थान की सिंचाई और बिजली उत्पादन की रीढ़ हैं। चंबल नदी की कुल लंबाई 965 किलोमीटर है, जिसमें से 376 किलोमीटर राजस्थान में बहती है। यह नदी अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लाती है और कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
बनास नदी
बनास नदी राजस्थान की एकमात्र ऐसी नदी है जो पूरी तरह से राजस्थान के भीतर ही बहती है। यह नदी राजसमंद जिले की खमनोर पहाड़ियों से निकलती है और चंबल नदी में मिल जाती है। बनास नदी की कुल लंबाई 512 किलोमीटर है। बनास नदी की सहायक नदियों में बेडच, कोथरी, मांसी, खारी, मोरेल और डाई शामिल हैं। यह नदी राजस्थान के मध्य और पूर्वी भागों में कृषि के लिए जल उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
लूनी नदी
लूनी नदी राजस्थान के आंतरिक जल निकासी बेसिन की सबसे महत्वपूर्ण नदी है। यह अजमेर जिले के नाग पहाड़ से निकलती है और कच्छ के रण में लुप्त हो जाती है। लूनी नदी का पानी मीठा होता है लेकिन अजमेर के नीचे यह खारा हो जाता है। यह नदी राजस्थान के 9 जिलों से होकर बहती है। लूनी नदी की कुल लंबाई 495 किलोमीटर है। इस नदी का basin area लगभग 37,363 वर्ग किलोमीटर है। लूनी नदी पश्चिमी राजस्थान के लिए जल का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, विशेष रूप से जोधपुर, पाली और बाड़मेर जिलों के लिए।
जल निकासी प्रणाली का ऐतिहासिक विकास
राजस्थान की जल निकासी प्रणाली का ऐतिहासिक विकास सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। कालीबंगा जैसे पुरातात्विक स्थलों से पता चलता है कि हड़प्पा काल में भी जल निकासी की उन्नत प्रणालियाँ मौजूद थीं।
प्राचीन जल प्रबंधन
राजस्थान के शासकों ने जल संरक्षण और प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया। राजपूत शासकों ने तालाबों, बावड़ियों और कुंओं का निर्माण करवाया। जल महल, उदयपुर की झीलें और जयपुर की जल आपूर्ति प्रणाली इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं। प्राचीन काल में राजस्थान में जल संरक्षण की अनेक विधियाँ विकसित की गईं, जैसे कि टांका प्रणाली, जो वर्षा जल को संग्रहित करने का एक कारगर तरीका था।
आधुनिक विकास
स्वतंत्रता के बाद, राजस्थान में जल निकासी और सिंचाई प्रणालियों के विकास पर विशेष जोर दिया गया। इंदिरा गांधी नहर परियोजना, राजस्थान नहर परियोजना और चंबल परियोजना जैसी बड़ी परियोजनाओं ने राज्य के जल प्रबंधन को नया आयाम दिया। इन परियोजनाओं ने न केवल सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि की बल्कि पेयजल की समस्या को हल करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जल निकासी की चुनौतियाँ और समाधान
राजस्थान की जल निकासी प्रणाली के सामने कई चुनौतियाँ हैं, जिनमें असमान वर्षा, बढ़ता शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं।
सूखा प्रबंधन
राजस्थान के अधिकांश भाग में अनिश्चित और असमान वर्षा होती है। सूखे की स्थिति से निपटने के लिए राज्य सरकार ने कई योजनाएँ शुरू की हैं, जिनमें जल संचयन, वाटर शेड प्रबंधन और ड्रिप सिंचाई को बढ़ावा देना शामिल है। राज्य सरकार ने सूखा प्रबंधन के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाया है, जिसमें पारंपरिक जल संरक्षण तकनीकों को आधुनिक तकनीकों के साथ जोड़ा गया है।
बाढ़ नियंत्रण
राजस्थान के कुछ हिस्सों में बाढ़ एक गंभीर समस्या है। बाढ़ नियंत्रण के लिए बाँधों, नहरों और जलाशयों का निर्माण किया गया है। साथ ही, early warning systems को भी विकसित किया गया है। राज्य सरकार ने बाढ़ प्रबंधन के लिए एक comprehensive plan तैयार किया है, जिसमें structural और non-structural दोनों तरह के उपाय शामिल हैं।
जल गुणवत्ता प्रबंधन
राजस्थान के कई हिस्सों में जल की गुणवत्ता एक गंभीर चिंता का विषय है। फ्लोराइड, नाइट्रेट और लवणता की उच्च सांद्रता पीने के पानी को दूषित करती है। इस समस्या के समाधान के लिए जल शुद्धिकरण संयंत्र और जल संरक्षण techniques को बढ़ावा दिया जा रहा है। राज्य सरकार ने जल गुणवत्ता मॉनिटरिंग के लिए एक व्यापक network स्थापित किया है।
भविष्य की संभावनाएँ और नीतिगत सुझाव
राजस्थान की जल निकासी प्रणाली के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए एक comprehensive approach की आवश्यकता है जिसमें traditional knowledge और modern technology का integration शामिल हो।
नदी जोड़ो परियोजना
राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना का राजस्थान की जल निकासी प्रणाली पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। इस परियोजना के तहत, water surplus basins से water deficit basins में पानी transfer किया जाएगा, जिससे राजस्थान के शुष्क western regions को लाभ होगा। इस परियोजना के successful implementation से राजस्थान के जल संकट को हल करने में महत्वपूर्ण मदद मिल सकती है।
जल संरक्षण techniques
राजस्थान में traditional water conservation techniques जैसे कि टांके, बावड़ियाँ और कुंडों का पुनरुद्धार आवश्यक है। साथ ही, modern techniques जैसे कि rainwater harvesting, artificial recharge और drip irrigation को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए। राज्य सरकार ने जल संरक्षण के लिए अनेक योजनाएँ शुरू की हैं, जिनमें मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान प्रमुख है।
निष्कर्ष
राजस्थान की जल निकासी प्रणाली एक जटिल और विविधतापूर्ण system है जो राज्य के भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक विकास को गहराई से प्रभावित करती है। अरावली पर्वतमाला द्वारा निर्धारित यह system दो distinct basins में विभाजित है - बंगाल की खाड़ी basin और अरब सागर basin, जिनके साथ ही एक विशाल आंतरिक drainage basin भी है।
राजस्थान की प्रमुख नदियाँ - चंबल, बनास, लूनी, माही और घग्घर - राज्य के जल संसाधनों का आधार हैं। इन नदियों पर बने बाँध और जलाशय सिंचाई, पेयजल आपूर्ति और बिजली उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
राजस्थान की जल निकासी प्रणाली के सामने अनेक चुनौतियाँ हैं, जिनमें असमान वर्षा वितरण, बढ़ता जल संकट, जल गुणवत्ता का ह्रास और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव शामिल हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक comprehensive और integrated approach की आवश्यकता है जिसमें traditional knowledge और modern technology का समन्वय हो।
भविष्य में, राजस्थान की जल निकासी प्रणाली के sustainable management के लिए watershed development, rainwater harvesting, efficient irrigation techniques और public awareness को बढ़ावा देना आवश्यक होगा। राज्य सरकार की various initiatives और policies इस दिशा में सकारात्मक कदम हैं, लेकिन और अधिक concerted efforts की आवश्यकता है।
अंत में, यह कहा जा सकता है कि राजस्थान की जल निकासी प्रणाली न केवल एक भौगोलिक phenomenon है बल्कि राज्य की culture, history और economy का एक अभिन्न अंग है। इसके sustainable management से ही राजस्थान के विकास की गति को तीव्र किया जा सकता है और आने वाली पीढ़ियों के लिए जल संसाधनों को सुरक्षित रखा जा सकता है।
Comments
Post a Comment